ज़ब पूरी नहीं मिल रही हैं दवाई, तो कैसे ठीक होंगे बीमार भाई

ज़ब पूरी नहीं मिल रही हैं दवाई, तो कैसे ठीक होंगे बीमार भाई

 

मरीजों से दुर्व्यवहार करना बन चूका हैं नियति, सुरक्षाकर्मी देते हैं परिजनों को धमकी

संजल प्रसाद (वरिष्ठ पत्रकार )

वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही पुरे देश मे बड़े-बड़े होर्डिंग, बोर्ड, पोस्टर, बैनर मुस्कुराते हुए अंदाज मे लगाकर मरीजों को राहत दिलाने और उनका सकुशल सस्ता और अच्छा इलाज कराने के लिए वचनबध्य दिख रहें हो लेकिन वाराणसी के राज्य कर्मचारी बीमा निगम अस्पताल (ईएसआईसी) जो मानसिक अस्पताल रोड, पंचक्रोशी रोड, पाण्डेयपुर में हैं इसकी हालत इतनी खराब हैं की इसे खुद इलाज की आवश्यकता बनी हुई है। यहाँ विगत कई माह से मरीजों को आधी- अधूरी ही दवाएं दी जा रही हैं जिससे मरीजों में गहरी नाराजगी एवं आक्रोश व्याप्त हैं। दवा पूरी नहीं होने का स्पष्ट कारण भी मरीजों-परिजनों को नहीं बताया जा रहा हैं जिससे मजबूरन मरीजों को अस्पताल के बाहर से महंगी दवाएं – इंजेक्शन खरीदना पड़ रहा हैं। इस अस्पताल में वाराणसी समेत लगभग पूरे पूर्वांचल से प्रतिदिन सैकड़ो की संख्या में सरकारी- गैर सरकारी कर्मचारी- मरीज, इलाज-जाँच के लिए आते हैं। मरीजों को घंटो इंतजार करने के बाद आधी अधूरी दवाएं दी जा रही हैं। जिससे उनकी बीमारी का सम्पूर्ण इलाज नहीं हो पा रहा हैं। इतना ही नहीं जाँच के लिए अधिकांश मशीन या तो खराब पड़ी हैं या फिर जाँच के बाद रिपोर्ट भी व्हाट्सअप पर दिया जा रहा हैं जो सरकारी दुर्व्यवस्था की पोल खोल रहा हैं। इस कारण से मरीजों को अस्पताल के बाहर से भी कई महंगी जाँच करानी पड़ रही है। चिकित्सको की मनमानी का आलम यह हैं की वह इलाज के नाम पर महज खानापूर्ति कर रहे हैं। मरीजों को बे-मन से बिना छुए, बिना पूरी बीमारी- बात सुने ही धड़ाधड़ दवाएं लिख दे रहें हैं। विश्वसनीय सूत्रों की माने तो एक ही कमरे में कई- कई चिकित्सक घंटों बैठकर बिना मरीजों को देखे केवल समय व्यतित कर मगजमारी कर मोटी मानदेय ले रहे हैं। आलम यह हैं की चिकित्सको के साथ- साथ यहाँ के महिला- पुरुष सुरक्षा गार्ड, कर्मचारी भी इतने बदज़ुबान हो गए हैं की वह भी मरीजों और उनके परिजनों से आये दिन दुर्व्यवहार कर रहे हैं, जो लगभग नियति बन चुकी हैं। अस्पताल के सीएमएस और जिम्मेदार अधिकारी तो ऐसे हैं की उनके कुम्भकर्णी नींद ही नहीं खुल रहें हैं। उन्हें पता ही नहीं हैं या फिर जानबूझकर के मौन धारण किये हुए हैं की अस्पताल मे मरीजों को कितनी दिक्क़तो का सामना करना पड़ रहा हैं। कहने को तो यह अस्पताल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में हैं लेकिन यहाँ इतनी ज्यादा दुश्वारियां हैं की उसे शब्दों में बया नहीं किया जा सकता हैं। अस्पताल मे मरीजों को लिखी गई पूरी दवाएं कब तक मिलेगी यह बताने वाला कोई जिम्मेदार नहीं हैं। यदि कोई मरीज या उसके बेबस, लाचार परिजन गलती से भी किसी सुरक्षाकर्मी, दवा वितरण करने वाले कर्मचारी या विभागीय किसी कर्मचारी से पूछ लिए की आखिर उन्हें आधी अधूरी दवाएं क्यों मिल रही हैं जिससे उनका पूर्ण इलाज नहीं हो पा रहा हैं, पूरी दवा क्यों नहीं दी जा रही हैं और कब तक उन्हें बाजार से दवाई खरीदनी पड़ेगी तो ऐसा लगता की सभी कर्मचारी कुत्तो की झुंड की तरह मरीज पर टूट पड़ते हैं। ऐसे मे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता हैं की उस दौरान मरीज और उनके परिजनों की क्या हालत होती होंगी। इस विशालकाय अस्पताल को बनवाने मे शासन -प्रशासन की मंशा तो यही रही होंगी की एक ही छत के निचे मरीजों का सम्पूर्ण जाँच, दवा और इलाज हो सके लेकिन यहाँ की दयनीय स्थिति देखकर ऐसा लग रहा है की मरीजों के साथ बहुत बड़ा छल किया जा रहा हैं। जो अस्पताल खुद ही वेंटीलेटर पर हो उससे मरीजों को कैसे राहत की सांस मिलेगी यह विचारणीय सवाल हैं।

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